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गुरुवार, 27 अगस्त 2009

"बादल" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")


मेरे पति (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक") ने
इस वर्ष बारिश शुरू होने पर,

"बादल" शीर्षक से यह गीत लिखा था।
इसे मैं अपनी आवाज में
प्रस्तुत कर रही हूँ-
श्रीमती अमर भारती


बड़ी हसरत दिलों में थी, गगन में छा गये बादल।
हमारे गाँव में भी आज, चल कर आ गये बादल।।

गरज के साथ आयें हैं, बरस कर आज जायेंगे,
सुहानी चल रही पुरवा, सभी को भा गये बादल।
हमारे गाँव में भी आज, चल कर आ गये बादल।।

धरा में जो दरारें थी, मिटी बारिश की बून्दों से,
किसानों के मुखौटो पर, खुशी चमका गये बादल।
हमारे गाँव में भी आज, चल कर आ गये बादल।।

पवन में मस्त होकर, धान लहराते फुहारों में,
पहाड़ों से उतर कर, मेह को बरसा गये बादल।
हमारे गाँव में भी आज, चल कर आ गये बादल।।

6 टिप्‍पणियां:

Mithilesh dubey ने कहा…

वाह बहुत सुन्दर रचना। बधाई

Urmi ने कहा…

बहुत ख़ूबसूरत और भावपूर्ण रचना! इस बेहतरीन रचना के लिए ढेर सारी बधाइयाँ!

vandana gupta ने कहा…

sundar bhavmayi rachna..........badhayi

शारदा अरोरा ने कहा…

सुन्दर गीत और मीठी आवाज

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) ने कहा…

बड़ी हसरत दिलों में थी, गगन में छा गये बादल।
हमारे गाँव में भी आज, चल कर आ गये बादल।।

ati sunder.........

aur bhaavpoorna.......

Asha Lata Saxena ने कहा…

बहुत अच्छी रचना |गान ने और चार चाँद लगा दिये |
आशा

चुराइए मत! अनुमति लेकर छापिए!!

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