मेरे पति (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक") ने
इस वर्ष स्वाधीनता-दिवस पर यह
गीत लिखा था।
इसे मैं अपनी आवाज में
प्रस्तुत कर रही हूँ-
श्रीमती अमर भारती
मेरे प्यारे वतन, जग से न्यारे वतन।
मेरे प्यारे वतन, ऐ दुलारे वतन।।
अपने पावों को रुकने न दूँगा कहीं,
मेरे प्यारे वतन, ऐ दुलारे वतन।।
अपने पावों को रुकने न दूँगा कहीं,
मैं तिरंगे को झुकने न दूँगा कहीं,
तुझपे कुर्बान कर दूँगा मैं जानो तन।
मेरे प्यारे वतन, ऐ दुलारे वतन।।
जन्म पाया यहाँ, अन्न खाया यहाँ,
सुर सजाया यहाँ, गीत गाया यहाँ,
सुर सजाया यहाँ, गीत गाया यहाँ,
नेक-नीयत से जल से किया आचमन।
मेरे प्यारे वतन, ऐ दुलारे वतन।।
मेरे प्यारे वतन, ऐ दुलारे वतन।।
तेरी गोदी में पल कर बड़ा मैं हुआ,
तेरी माटी में चल कर खड़ा मैं हुआ,
मैं तो इक फूल हूँ तू है मेरा चमन।
मेरे प्यारे वतन, ऐ दुलारे वतन।।
तेरी माटी में चल कर खड़ा मैं हुआ,
मैं तो इक फूल हूँ तू है मेरा चमन।
मेरे प्यारे वतन, ऐ दुलारे वतन।।
स्वप्न स्वाधीनता का सजाये हुए,
लाखों बलिदान माता के जाये हुए,
कोटि-कोटि हैं उनको हमारे नमन।
मेरे प्यारे वतन, ऐ दुलारे वतन।।
लाखों बलिदान माता के जाये हुए,
कोटि-कोटि हैं उनको हमारे नमन।
मेरे प्यारे वतन, ऐ दुलारे वतन।।
जश्ने आजादी आती रहे हर बरस,
कौम खुशियाँ मनाती रहे हर बरस,
देश-दुनिया में हो बस अमन ही अमन।
मेरे प्यारे वतन, ऐ दुलारे वतन।।
कौम खुशियाँ मनाती रहे हर बरस,
देश-दुनिया में हो बस अमन ही अमन।
मेरे प्यारे वतन, ऐ दुलारे वतन।।