मेरे श्रीमान जी (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक") लिखते तो बहुत हैं, परन्तु घर में कभी गाते नही हैं। आज उन्हीं की आवाज में उनका निम्न गीत प्रस्तुत कर रही हूँ। श्रीमती अमर भारती बुलबुलों का सदन है मेरा वतन, क्यों इसे वीरां बनाने पर तुले हो? खुशबुओं का चमन है मेरा वतन, क्यों यहाँ दुर्गन्ध लाने पर तुले हो? शान्त-सुन्दर भवन है मेरा वतन, आग क्यों इसमें लगाने पर तुले हो? प्यार की गंग-ओ-जमुन मेरा वतन, क्यों यहाँ हिंसा बहाने पर तुले हो? रोशनी में मगन है, नन्हा दिया, इससे क्यों घर को जलाने पर तुले हो? |
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शनिवार, 22 अगस्त 2009
"बुलबुलों का सदन है मेरा वतन" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
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6 टिप्पणियां:
अच्छा लगा मयंक जी सुनना!!
सुन्दर गीत,
पढ़ने का अन्दाज बढ़िया।
दोनों को बधाई।
सर्वप्रथम धन्यवाद आपका जो मेरी पढी कहानी सुनी---बहुत अच्छा आप दोनो की आवाज मे गीत सुनना...
शास्त्री जी.
आपकी सुरों में बंधी कविता बहुत भायी..
बधाई..
बहुत ख़ूबसूरत रचना ! बहुत अच्छा लगा पढ़कर !
nice
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