“अमर भारती पहेली-50” (गोल्डन जुबली अंक) |
नीचे पद्यांश दिया जा रहा है- "मसृण, गांधार देश के नील रोम वाले मेषों के चर्म, ढक रहे थे उसका वपु कांत बन रहा था वह कोमल वर्म। नील परिधान बीच सुकुमार खुल रहा मृदुल अधखुला अंग, खिला हो ज्यों बिजली का फूल मेघवन बीच गुलाबी रंग। आह वह मुख पश्विम के व्योम बीच जब घिरते हों घन श्याम, अरूण रवि-मंडल उनको भेद दिखाई देता हो छविधाम।" ------ 1- सन्दर्भ सहित इस पद्यांश की व्याख्या कीजिए! 2- इसके रचयिता के व्यक्तित्व और कृतित्व पर प्रकाश डालिए! 3- आंगिक, वाचिक, सात्विक और आहार्य क्या होता है? --------------------- नोट- यूनिकोड या मंगल फॉण्ट में उपरोक्त प्रश्नों के सटीक और सबसे पहले उत्तर देने वाले प्रतिभागी को पहेली का विजेता घोषित किया जायेगा! इन्हें साहित्य शारदा मंच, खटीमा (उत्तराखण्ड) द्वारा "साहित्यश्री" की मानद उपाधि से अलंकृत किया जायेगा! क्रमशः 2-3-4-5 …....... पर रखा जायेगा! ---------------------- इन प्रश्नों के उत्तर आप 28 सितम्बर, 2010, सायं 7 बजे तक दे सकते हैं! परिणाम 30 सितम्बर, 2010 को प्रातः 9 बजे तक प्रकाशित किये जायेंगे! ----------- (30 सितम्बर को इस ब्लॉग की ब्लॉगर का जन्मदिन भी तो है) |
अमर भारती पहेली न.-51 अगले रविवार को प्रातः 8 बजे प्रकाशित की जायेगी! |