सरदी का मौसम गया, हुआ शीत का अन्त।
खुशियाँ सबको बाँटकर, वापिस गया बसन्त।।
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गरम हवा चलने लगी, फसल गयी है सूख।
घर में मेहूँ आ गये, मिटी कृषक की भूख।।
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नवसम्वत् के साथ में, सूरज हुआ जवान।
नभ से आग बरस रही, तपने लगे मकान।।
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हिमगिरि से हिम पिघलता, चहके चारों धाम।
हरि के दर्शनमात्र से, मिटते ताप तमाम।।
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दोहों में ही निहित है, जीवन का भावार्थ।
गरमी में अच्छे लगें, शीतल पेय पदार्थ।।
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करता लू का शमन है, खरबूजा-तरबूज।
ककड़ी-खीरा बदन को, रखते हैं महफूज।।
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ठण्डक देता सन्तरा, ताकत देता सेब।
महँगाई इतनी बढ़ी, खाली सबकी जेब।।
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मंगलवार, 4 अप्रैल 2017
दोहे "जीवन का भावार्थ" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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17 टिप्पणियां:
वाह बहुत खूब बढ़िया रचना
बहुत सुन्दर अभिवयक्ति
Very good write-up. I certainly love this website. Thanks!
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बहुत ही सुंदर दोहे
लाजवाब दोहे
सभी दोहे बहुत अच्छे लगे। ..मौसमों से रंग बिखेरते
प्रणाम
कोविड -१९ के इस समय में अपने और अपने परिवार जानो का ख्याल रखें। .स्वस्थ रहे। .
बहुत ही सुंदर दोहे मयंक जी । आपकी रचनाएं बहुत ही उम्दा होती हैं। लाजवाब । अपना ख्याल रखियेगा ।
सादर ।
Bahut hi achi hai.
bahut sundar
बहुत सुंदर दोहे 🙏
'दोहों में ही निहित है, जीवन का भावार्थ।'
- और उस भावार्थ को दोहों में निरूपित कर रहे हैं.
बहुत अच्छे दोहे लिखे हैं आपने..
सादर प्रणाम
Shandar sir
बहुत खूब, सुन्दर दोहे,
आप की पोस्ट बहुत अच्छी है आप अपनी रचना यहाँ भी प्राकाशित कर सकते हैं, व महान रचनाकरो की प्रसिद्ध रचना पढ सकते हैं।
Hindi Story
meri baate
Bhoot Ki kahani
Akabar Birbal
MPPSC
वाह सर बहुत ही बढ़िया🙏
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