सरदी का मौसम गया, हुआ शीत का अन्त।
खुशियाँ सबको बाँटकर, वापिस गया बसन्त।।
--
गरम हवा चलने लगी, फसल गयी है सूख।
घर में मेहूँ आ गये, मिटी कृषक की भूख।।
--
नवसम्वत् के साथ में, सूरज हुआ जवान।
नभ से आग बरस रही, तपने लगे मकान।।
--
हिमगिरि से हिम पिघलता, चहके चारों धाम।
हरि के दर्शनमात्र से, मिटते ताप तमाम।।
--
दोहों में ही निहित है, जीवन का भावार्थ।
गरमी में अच्छे लगें, शीतल पेय पदार्थ।।
--
करता लू का शमन है, खरबूजा-तरबूज।
ककड़ी-खीरा बदन को, रखते हैं महफूज।।
--
ठण्डक देता सन्तरा, ताकत देता सेब।
महँगाई इतनी बढ़ी, खाली सबकी जेब।।
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मंगलवार, 4 अप्रैल 2017
दोहे "जीवन का भावार्थ" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
दोहे "जीवन का भावार्थ" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
सरदी का मौसम गया, हुआ शीत का अन्त।
खुशियाँ सबको बाँटकर, वापिस गया बसन्त।।
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गरम हवा चलने लगी, फसल गयी है सूख।
घर में मेहूँ आ गये, मिटी कृषक की भूख।।
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नवसम्वत् के साथ में, सूरज हुआ जवान।
नभ से आग बरस रही, तपने लगे मकान।।
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हिमगिरि से हिम पिघलता, चहके चारों धाम।
हरि के दर्शनमात्र से, मिटते ताप तमाम।।
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दोहों में ही निहित है, जीवन का भावार्थ।
गरमी में अच्छे लगें, शीतल पेय पदार्थ।।
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करता लू का शमन है, खरबूजा-तरबूज।
ककड़ी-खीरा बदन को, रखते हैं महफूज।।
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ठण्डक देता सन्तरा, ताकत देता सेब।
महँगाई इतनी बढ़ी, खाली सबकी जेब।।
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दोहे "जीवन का भावार्थ" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
सरदी का मौसम गया, हुआ शीत का अन्त।
खुशियाँ सबको बाँटकर, वापिस गया बसन्त।।
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गरम हवा चलने लगी, फसल गयी है सूख।
घर में मेहूँ आ गये, मिटी कृषक की भूख।।
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नवसम्वत् के साथ में, सूरज हुआ जवान।
नभ से आग बरस रही, तपने लगे मकान।।
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हिमगिरि से हिम पिघलता, चहके चारों धाम।
हरि के दर्शनमात्र से, मिटते ताप तमाम।।
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दोहों में ही निहित है, जीवन का भावार्थ।
गरमी में अच्छे लगें, शीतल पेय पदार्थ।।
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करता लू का शमन है, खरबूजा-तरबूज।
ककड़ी-खीरा बदन को, रखते हैं महफूज।।
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ठण्डक देता सन्तरा, ताकत देता सेब।
महँगाई इतनी बढ़ी, खाली सबकी जेब।।
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दोहे "जीवन का भावार्थ" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
सरदी का मौसम गया, हुआ शीत का अन्त।
खुशियाँ सबको बाँटकर, वापिस गया बसन्त।।
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गरम हवा चलने लगी, फसल गयी है सूख।
घर में मेहूँ आ गये, मिटी कृषक की भूख।।
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नवसम्वत् के साथ में, सूरज हुआ जवान।
नभ से आग बरस रही, तपने लगे मकान।।
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हिमगिरि से हिम पिघलता, चहके चारों धाम।
हरि के दर्शनमात्र से, मिटते ताप तमाम।।
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दोहों में ही निहित है, जीवन का भावार्थ।
गरमी में अच्छे लगें, शीतल पेय पदार्थ।।
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करता लू का शमन है, खरबूजा-तरबूज।
ककड़ी-खीरा बदन को, रखते हैं महफूज।।
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ठण्डक देता सन्तरा, ताकत देता सेब।
महँगाई इतनी बढ़ी, खाली सबकी जेब।।
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सोमवार, 20 मार्च 2017
गीत "कैसे बचे यहाँ गौरय्या!" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
ज़हरीले हैं ताल-तलय्या।
दाना-दुनका खाने वाली,
कैसे बचे यहाँ गौरय्या?
अन्न उगाने के लालच में,
ज़हर भरी हम खाद लगाते,
खाकर जहरीले भोजन को,
रोगों को हम पास बुलाते,
घटती जाती हैं दुनिया में,
अपनी ये प्यारी गौरय्या।
दाना-दुनका खाने वाली,
कैसे बचे यहाँ गौरय्या??
चिड़िया का तो छोटा तन है,
छोटे तन में छोटा मन है,
विष को नहीं पचा पाती है,
इसीलिए तो मर जाती है,
सुबह जगाने वाली जग को,
अपनी ये प्यारी गौरय्या।।
दाना-दुनका खाने वाली,
कैसे बचे यहाँ गौरय्या??
गिद्धों के अस्तित्व लुप्त हैं,
चिड़ियाएँ भी अब विलुप्त हैं,
खुशियों में मातम पसरा है,
अपनी बंजर हुई धरा है,
नहीं दिखाई देती हमको,
अपनी ये प्यारी गौरय्या।।
दाना-दुनका खाने वाली,
कैसे बचे यहाँ गौरय्या??
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रविवार, 11 अगस्त 2013
"बाबा नागार्जुन आधी रात के बाद लिखते थे" (डा. रूपचन्द्र शास्त्री ‘'मयंक')
गुरुवार, 1 अगस्त 2013
"एक संस्मरण" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
गुरुवार, 7 फ़रवरी 2013
"उत्तर-अमर भारती-पहेली-104" (श्रीमती अमर भारती)
अमर भारती साप्ताहिक पहेली-103
का सही उत्तर है!
सहस्त्रधारा, देहरादून (उत्तराखण्ड)
ने दूसरी बार सबसे पहले
पहेली का सही उत्तर दिया,
और आज की पहेली की विजेता रहीं!
आपके प्रतिभाग करने के लिए आभार!
आपके प्रतिभाग करने के लिए आभार!
निम्न प्रमाणपत्र
की सम्पत्ति है।
4 comments:
- Rajesh Kumari 4 फरवरी 2013 6:19 pm
-
आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार 5/2/13 को चर्चा मंच पर राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आपका वहां हार्दिक स्वागत है
- Rajesh Kumari 4 फरवरी 2013 6:35 pm
-
सह्रस्त्र धारा देहरादून
- Rajesh Kumari 4 फरवरी 2013 6:36 pm
-
सह्रस्त्र धारा देहरादून
- Surendra Singh Bhamboo 7 फरवरी 2013 10:43 am
-
श्रीमान जी इस बार हमें तो पता नहीं चल पा रहा है ये कहा की जगह है। पर जगह बहुत सुन्दर लग रही है।
की सम्पत्ति है।
4 comments:
- Rajesh Kumari 4 फरवरी 2013 6:19 pm
- आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार 5/2/13 को चर्चा मंच पर राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आपका वहां हार्दिक स्वागत है
- Rajesh Kumari 4 फरवरी 2013 6:35 pm
- सह्रस्त्र धारा देहरादून
- Rajesh Kumari 4 फरवरी 2013 6:36 pm
- सह्रस्त्र धारा देहरादून
- Surendra Singh Bhamboo 7 फरवरी 2013 10:43 am
- श्रीमान जी इस बार हमें तो पता नहीं चल पा रहा है ये कहा की जगह है। पर जगह बहुत सुन्दर लग रही है।
अमर भारती पहेली न.-105
अगले रविवार को
प्रातः 11 बजे प्रकाशित की जायेगी!
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