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शुक्रवार, 21 अगस्त 2009

मेरे प्यारे वतन (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")

इस वर्ष स्वाधीनता-दिवस पर यह
गीत लिखा था।
इसे मैं अपनी आवाज में
प्रस्तुत कर रही हूँ-
श्रीमती अमर भारती




मेरे प्यारे वतन, जग से न्यारे वतन।
मेरे प्यारे वतन, ऐ दुलारे वतन।।

अपने पावों को रुकने न दूँगा कहीं,
मैं तिरंगे को झुकने न दूँगा कहीं,
तुझपे कुर्बान कर दूँगा मैं जानो तन।
मेरे प्यारे वतन, ऐ दुलारे वतन।।

जन्म पाया यहाँ, अन्न खाया यहाँ,
सुर सजाया यहाँ, गीत गाया यहाँ,
नेक-नीयत से जल से किया आचमन।
मेरे प्यारे वतन, ऐ दुलारे वतन।।

तेरी गोदी में पल कर बड़ा मैं हुआ,
तेरी माटी में चल कर खड़ा मैं हुआ,
मैं तो इक फूल हूँ तू है मेरा चमन।
मेरे प्यारे वतन, ऐ दुलारे वतन।।

स्वप्न स्वाधीनता का सजाये हुए,
लाखों बलिदान माता के जाये हुए,
कोटि-कोटि हैं उनको हमारे नमन।
मेरे प्यारे वतन, ऐ दुलारे वतन।।

जश्ने आजादी आती रहे हर बरस,
कौम खुशियाँ मनाती रहे हर बरस,
देश-दुनिया में हो बस अमन ही अमन।
मेरे प्यारे वतन, ऐ दुलारे वतन।।

6 टिप्‍पणियां:

Mithilesh dubey ने कहा…

लाजवाब रचना, आपकी आवाज बहुत मीठी है।

Mithilesh dubey ने कहा…

बिना किसी धुन के सुन्दर रचना।

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

श्रीमती जी!
पहली बार आपने हिम्मत की है।
बधाई।

siddheshwar singh ने कहा…

बहुत - बहुत बधाई!
सुन्दर रचना - सुंदर स्वर !

Urmi ने कहा…

बहुत ख़ूबसूरत रचना! बहुत प्यारी और मीठी आवाज़!इतना सुंदर लगा की शब्दों में बयान नहीं सकती!आपको ढेर सारी बधाइयाँ!

बेनामी ने कहा…

Rastra prem se saraabor rachna.
वैज्ञानिक दृ‍ष्टिकोण अपनाएं, राष्ट्र को उन्नति पथ पर ले जाएं।

चुराइए मत! अनुमति लेकर छापिए!!

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