भाग लेना न भूलिए!
अमर भारती साप्ताहिक पहेली-100
18 सितम्बर को प्रकाशित होगी!
जिसका उत्तर प्रकाशित करने में
हमारी टीम को 15 दिनों का समय लग जाएगा!
जिसमें आद्योपान्त लेखा-जोखा निकाल कर ही
परिणाम दिये जाएँगे।
पहेली नं. 100 का सही उत्तर देने वालों को
ब्लॉगश्री की मानद उपाधि से
अलंकृत किया जाएगा!
अमर भारती साप्ताहिक पहेली-99
का सही उत्तर है!
"पमार" का पौधा है यह तो,
कुछ जगह इसको "पमाड़" भी बोला जाता है!
सबसे पहेली का पहले सही उत्तर दिया,
अतः आज की पहेली के विजेता रही!
श्रीमती विद्या, चेन्नई
इसके बाद उत्तर देने वाले रहे!
ये विजेता नं.-2 रहे!
ये विजेता नं.-2 रहे!
आपके प्रतिभाग करने के लिए आभार!
आपके प्रतिभाग करने के लिए आभार!
निम्न प्रमाणपत्र
श्रीमती विद्या, चेन्नई की सम्पत्ति है।सभी प्रतिभागियों के उत्तर निम्नवत् रहे!
मेथी
Other Names: Jue ming zi, Prapanna, Cassia, Takara, chakramarda, cassia seed, chakunda
गजेन्द्र सिंह
शास्त्री जी,
हमारे यहा तो इस पेड़ को "पमहाड़" के नाम से जाना जाता है .... आपके यहा पता नहीं किस नाम से जानते है
इसका कोई इस्तेमाल नहीं होता , न तो ओसे पशुओ को खिलाया जाता है और न ही इसकी फलियो का कोई इस्तेमाल होता है
शायद कोई जड़ी बूटी हो तो इसके बारे मे हमे नहीं पता
methi kah rahe hain to methi hi hoga hamein to pata nahi.
'gwaar ki fali'.
'gwaar ki fali'.
मूँगफली का पौधा है श्रीमन्त ।हमारे घर पर इनकी खेती पहले होती थी ।इनके फल भी सितम्बर के आस पास ही आते हैं ।
हमारे तरफ इनकी आज भी पर्याप्त मात्रा में खेती की जाती है ।
mujhe to ye chakvad hi lag raha hai
चकवड़ का पौधा है ये .....
yeh maithi ka paudha hai
इसका नाम है 'लचका 'यह दीखता तो
माथी जैसा है पर स्वाद में कड़वा होता है |
आशा
संस्कृत- चक्रमर्द। हिन्दी-पवाड़, पवाँर, चकवड़। मराठी- टाकला। गुजराती- कुवाड़ियों। बंगला- चाकुन्दा। तेलुगू- तागरिस। तामिल- तगरे। मलयालम- तगर। फरसी- संग सबोया। इंगलिश- ओवल लीव्ड केशिया। लैटिन- केशिया टोरा।
वर्षा ऋतु की पहली फुहार पड़ते ही इसके पौधे खुद उग आते हैं और गर्मी के दिनों में जो-जो जगह सूखकर खाली हो जाती है, वह घास और पवाड़ के पौधे से भरकर हरी-भरी हो जाती है। इसके पत्ते अठन्नी के आकार के और तीन जोड़े वाले होते हैं।इसकी फलियाँ पतली व गोल होती हैं। यह खाँसी के लिए बहुत गुणकारी होता है, इसलिए इसे कासमर्द यानी कास (खाँसी) का शत्रु कहा गया है।आशा यह पूआड़या है इसका उपयोग बजन घटाने के लिए और बादी कम करने के लिए किया जाता है |यह नाम मालवा मैं प्रचलित है|
वर्षा ऋतु की पहली फुहार पड़ते ही इसके पौधे खुद उग आते हैं और गर्मी के दिनों में जो-जो जगह सूखकर खाली हो जाती है, वह घास और पवाड़ के पौधे से भरकर हरी-भरी हो जाती है। इसके पत्ते अठन्नी के आकार के और तीन जोड़े वाले होते हैं।इसकी फलियाँ पतली व गोल होती हैं। यह खाँसी के लिए बहुत गुणकारी होता है, इसलिए इसे कासमर्द यानी कास (खाँसी) का शत्रु कहा गया है।
आशा