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मंगलवार, 4 अप्रैल 2017

दोहे "जीवन का भावार्थ" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

सरदी का मौसम गया, हुआ शीत का अन्त।
खुशियाँ सबको बाँटकर, वापिस गया बसन्त।।
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गरम हवा चलने लगी, फसल गयी है सूख।
घर में मेहूँ आ गये, मिटी कृषक की भूख।।
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नवसम्वत् के साथ में, सूरज हुआ जवान।
नभ से आग बरस रही, तपने लगे मकान।।
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हिमगिरि से हिम पिघलता, चहके चारों धाम।
हरि के दर्शनमात्र से, मिटते ताप तमाम।।
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दोहों में ही निहित है, जीवन का भावार्थ।
गरमी में अच्छे लगें, शीतल पेय पदार्थ।।
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करता लू का शमन है, खरबूजा-तरबूज।
ककड़ी-खीरा बदन को, रखते हैं महफूज।।
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ठण्डक देता सन्तरा, ताकत देता सेब।
महँगाई इतनी बढ़ी, खाली सबकी जेब।।

15 टिप्‍पणियां:

pushpendra dwivedi ने कहा…

वाह बहुत खूब बढ़िया रचना

radha tiwari( radhegopal) ने कहा…

बहुत सुन्दर अभिवयक्ति

NITU THAKUR ने कहा…

बहुत ही सुंदर दोहे

Sawai Singh Rajpurohit ने कहा…

लाजवाब दोहे

VenuS "ज़ोया" ने कहा…

सभी दोहे बहुत अच्छे लगे। ..मौसमों से रंग बिखेरते
प्रणाम

कोविड -१९ के इस समय में अपने और अपने परिवार जानो का ख्याल रखें। .स्वस्थ रहे। .

Harash Mahajan ने कहा…

बहुत ही सुंदर दोहे मयंक जी । आपकी रचनाएं बहुत ही उम्दा होती हैं। लाजवाब । अपना ख्याल रखियेगा ।
सादर ।

Arun Singh ने कहा…

Bahut hi achi hai.

shashi purwar ने कहा…

bahut sundar

Dr (Miss) Sharad Singh ने कहा…

बहुत सुंदर दोहे 🙏

प्रतिभा सक्सेना ने कहा…

'दोहों में ही निहित है, जीवन का भावार्थ।'
- और उस भावार्थ को दोहों में निरूपित कर रहे हैं.

मन जैसा कुछ ने कहा…

बहुत अच्छे दोहे लिखे हैं आपने..

सादर प्रणाम

BAL SAJAG ने कहा…

Shandar sir

SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR5 ने कहा…

बहुत खूब, सुन्दर दोहे,

Hindi Kavita ने कहा…

आप की पोस्ट बहुत अच्छी है आप अपनी रचना यहाँ भी प्राकाशित कर सकते हैं, व महान रचनाकरो की प्रसिद्ध रचना पढ सकते हैं।

डॉ 0 विभा नायक ने कहा…

वाह सर बहुत ही बढ़िया🙏

चुराइए मत! अनुमति लेकर छापिए!!

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